अगरबत्ती और बांबू स्टिक
आज भारत में अगरबत्ती का बिजनेस 20 हजार करोड़ से ज्यादा के टर्नओवर का बन चुका है। अगरबत्ती पूरी तरह से उपयोग में लाए जाने वाली वस्तु है। जिसे हम कंज्यूमएबल प्रोडक्ट भी कहते हैं ।माने हर दिन नई अगरबत्ती उपयोग में लाई जाती है। अगरबत्ती की डिमांड हमेशा बरकरार रहती है। बड़ी आसानी से अगरबत्ती का बिजनेस किया जा सकता है। लेकिन अगरबत्ती कैसे बनाएं इसकी जानकारी आसानी से नहीं मिलने के कारण कई लोगों का सपना धरा का धरा रह जाता है।
भारत
की धार्मिक भावनाओं में अगरबत्ती का व्यवसाय पनपाने की पूर्ण क्षमता है।
श्रावणमासी से लेकर होली,
मोहर्रम और कई तरह के उत्सवों में भी अगरबत्ती का भरपूर मात्रा में उपयोग होता है।
दो
तीन हजार की कम लागत में भी अगरबत्ती का व्यवसाय तुरंत शुरू किया जा सकता है। गली
कूचे में भी अगरबत्ती का ग्राहक अच्छी और सस्ती अगरबत्ती खरीदने की ताक में रहता
है।
आइए
हम अगरबत्ती को बनाने का संपूर्ण तंत्र सीखें। आए दिन इस तंत्र को गोपनीय रखा जाता
है। या कुछ बातें उजागर करके अहम बातों को छिपाया जाता है। हम यहां अगरबत्ती की सारी खूबियां सीखेंगे।
यहा हम मसाला अगरबत्ती, सादी काली अगरबत्ती, अगरबत्ती पाउडर, अगरबत्ती परफ्यूम कैसे बनाएं आदी सारी बातों का
व्यावसायिक तंत्र सीखने वाले हैं।
अगरबत्ती
का सीक्रेट
अगरबत्ती
दो बातों पर निर्भर है। पहली अगरबत्ती पाउडर और दूसरी अगरबत्ती का परफ्यूम। इसमें
भी परफ्यूम का काफी ज्यादा महत्व है। आपकी सादी काली कोयला पाउडर या सफेद जोश
पाउडर से बनी अगरबत्ती जिसे कच्ची
अगरबत्ती भी कहते हैं जो परफ्यूम में डुबोई ही नहीं होती; चाहे जितनी भी अच्छी
हो मगर आपका परफ्यूम अच्छा नहीं है तो आपके माल को अच्छा दाम नहीं मिलेगा। परफ्यूम
खुशबूदार होना बहुत जरूरी है।
यहां हम क्रमवार इस अगरबत्ती का उत्पादन कैसे होता है यह सीखेंगे। आजकल कच्ची अगरबत्ती का
उत्पादन करने के लिए मशीनें है; जो
1 घंटे में 80 किलो कच्ची अगरबत्ती का उत्पादन करती हैं। कई मशीनें तो इससे भी
ज्यादा उत्पादन करती है। कई जगहों पर बिजली की उपलब्धता नहीं है। वहां पाव से चलने
वाली मशीन का उपयोग किया जाता है। यह मशीन 6 घंटे में 7 से 14 किलो कच्ची अगरबत्ती का उत्पादन करती है। इन सारी
तकनीकों में सबसे सस्ती और पुरानी हाथ से रगड़ी हुई अगरबत्ती का निर्माण है। भारत
में आज भी कई जगहों पर यह हाथ से बनी हुई अगरबत्ती का निर्माण किया जाता है। इसमें काफी कम लागत
लगती है लेकिन उत्पादकता भी कम होती है।
अगरबत्ती
मे लगने वाली काड़ी माने बंबू स्टिक से भी उत्पादन खर्च में काफी फर्क पड़ता है।
मशीन से बनने वाली अगरबत्ती को चिकनी, एक समान,
बिना टूटने वाली बांबू स्टिक लगती है। अभी तक चाइना से इस तरह की बांबू स्टिक भरपूर
मात्रा में मंगवाई जाती थी। कोरोना काल में चाइना से स्टिक मंगवाना बंद होने के
बाद भारतीय बांबू से बनी स्टिक मार्केट में जोर पकड़ रही है। अभी के दिनों में
इसी बांबू स्टिक से बनी अगरबत्ती मार्केट में ज्यादा आ रही है। कोरोना पूर्व वियतनाम से भी बांबू स्टिक का आयात करवाया जाता
था। लेकिन आज वह भी ज्यादा मंगवाई नहीं
जाती। हैंड रोल अगरबत्ती के लिए हाथ से छिली हुई बांबू् स्टिक का इस्तेमाल किया जाता
है। वह सस्ती भी पड़ती है। लेकिन अभी कई जगह हैंड रोल अगरबत्ती के लिए भी मशीन में
लगने वाली चाइना स्टिक या वियतनाम स्टिक या इंडियन स्टिक का उपयोग हो रहा है।
आइए जाने इन अलग-अलग तरह की बंबू स्टिक की
विशेषताएं और अपने बिजनेस के लिए उसका टेक्निकल उपयोग कैसे किया जा सकता है।
चाइना
बंबू स्टिक
यह स्टिक काफी चिकनी और रंग में सफेद
होती है। यह कोई भी रंग जल्दी पकड़ लेती
है। यह पानी की वजह से नहीं फूलती; इस कारण अगरबत्ती में छोटी दरारे नहीं पड़ती है।
इनका वजन वियतनाम स्टिक की तुलना में
ज्यादा होता है। इस कारण 1 किलो मे कच्ची अगरबत्ती की संख्या कम आती है। वैसे 9
इंची1 किलो बंबू स्टिक से लगभग 900 कच्ची अगरबत्ती बनती है।
यह वियतनाम
से आती है। यह काफी पतली होने के कारण एक किलो बांबू स्टिक में कच्ची अगरबत्ती की संख्या ज्यादा आती है। माने
9 इंची हाइट वाली 1 किलो स्टिक से लगभग 1000 कच्ची अगरबत्ती बन जाती है। यह उष्णकटिबंधीय बांबू
प्रजाति से बनाई जाती है। इस वजह से गीली
होने के बाद यह स्टिक फूल जाती है और इसी कारण वियतनाम बांबू से बनी अगरबत्तीयों
में छोटी दरारे दिखाई देती है।
भारतीय
बंबू स्टिक
भारत
के उष्णकटिबंधीय बास से यह बनाई जाती है ।इसका वजन बहुत ज्यादा होता है। 9 इंची
हाइट वाली 1 किलो इंडियन स्टिक से लगभग
850 कच्ची अगरबत्ती बनती है। अब मशीनी सफाई से इसे और हल्का करने की कोशिश की जा
रही है। यह बंबू स्टिक गीलेपन से बहुत ज्यादा फूल जाती है। इसी कारण इससे बनी अगरबत्ती
में काफी दरारें दिखाई देती है।
हाल के दिनों में चाइना स्टिक सबसे ज्यादा महंगी है। लेकिन मशीनी अगरबत्ती उत्पादन के लिए इसकी ज्यादा डिमांड रहती है। इसकी कीमत में तेजी मंदी काफी रहती है। हाल ही के दिनों में देखा जाए तो चाइना स्टिक ₹100 प्रति किलो से भी ऊपर के दामों में बेची जा रही है। उत्पादन लागत कम आने के लिए हम वियतनाम स्टिक और इंडियन स्टिक का इस्तेमाल कर सकते हैं। वह चाइना स्टिक से सस्ती आती है। इंडियन स्टिक तो लगभग 90 ₹95 प्रति किलो मार्केट में मिल जाती है।
अब
हम अगरबत्ती को वियतनाम स्टिक और भारतीय बंबू स्टिक से पडने वाली
दरारे कैसे हटाई जाए इसके बारे में जानकारी लेंगे।
कच्चे अगरबत्ती में छोटी बड़ी दरारे होने से वे ज्यादा परफ्यूम सोक लेती है। और हमारे प्रोडक्शन कॉस्ट को बढ़ाती है। इंडियन बांबू और वियतनाम बांबू स्टिक अगरबत्ती के गीले कोटिंग से फूल जाती है। बांबू स्टिक गिलापन सोकने के कारण अपने आकार से और मोटी हो जाती है। जो ही वह मोटी हो जाती है ;उसके ऊपर लगा अगरबत्ती का कोटिंग फट जाता है। उसमे कभी बड़ी कभी छोटी दरारे पड़ जाती है। जब सुखी स्टिक को अगरबत्ती का गीला कोटिंग लग जाता है, तब एकदम से दरारे दिखाई नहीं पड़ती ।लेकिन कुछ समय बाद सुखी स्टिक गिलापन सोक लेती है तो वह अपने पहले के आकार से और मोटी होती है। तभी अगरबत्ती में क्रैक पड़ने लगते हैं। यह अगरबत्ती बनने के 15-20 मिनट बाद दिखाई देती है।
वियतनाम स्टिक की तुलना में इंडियन स्टिक से बनी अगरबत्ती में दरारे ज्यादा पड़ती है। कई बार तो यह दरारे इतनी ज्यादा बड़ी होती है कि हमें उस अगरबत्ती को फेंकना पड़ता है। चाइना स्टिक से बनी अगरबत्ती में यह समस्या नहीं आती है। वह अलग प्रजाति के बांबू से बनी होने के कारण गिलापन नहीं सोकती। इस प्रजाति का बांबू भारत में अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है लेकिन उससे अगरबत्ती स्टिक बनने का प्रमाण काफी कम है। होटल में इस्तेमाल किए जाने वाली टूथपिक बनाने में ही इसको ज्यादा उपयोग में लाया जाता है।
अगरबत्ती मैं पढ़ने वाली क्रैक से छुटकारा पाने का आसान तरीका।
अगरबत्ती में पड़ने वाली क्रैक से छुटकारा पाने के लिए एक आसान और सस्ता तरीका है। हम गर अगरबत्ती का कोटिंग लगने से पहले ही वियतनाम या इंडियन स्टिक को पानी में भिगोकर निकाल ले तो वह पानी सोककर पहले से ही फूल जाएगी। ऐसी फूली हुई बांबू स्टिक पर अगरबत्ती का गिला कोटिंग लगाए तो वह और नहीं फूलती और अपने अगरबत्ती को क्रेक नहीं पड़ती। बल्कि उल्टा अगरबत्ती कोटिंग को और मजबूती से बांधे रखती है।
स्टिक को गिला करने का तरीका
अगरबत्ती बनाने के 10:15 मिनट पहले ही बांबू स्टिक के बंडलों को पानी में 2- 3 सेकंड के लिए डुबोकर तुरंत निकाल ले। इतने समय में वह पानी से गीली हो जाती है और 10:15 मिनट में ही सारी स्टिक पानी सोककर मोटी हो जाती है।
बांबू स्टिक के बंडल को पानी में डूबते हुए यह ध्यान देना जरूरी है कि उसका तीन चौथाई हिस्साही पानी में डूबे। एक चौथाई हिस्से को पानी में भिगोने की जरूरत नहीं होती है। अगरबत्ती का कोटिंग स्टीकके तीन चौथाई हिस्से को ही लगने वाला होता है। उसके नीचे का हिस्सा तो केवल अगरबत्ती हाथ में पकड़ने के लिए उपयोग में आता है। उसे भीगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। अगरबत्ती बनाते समय पूरा पानी सोकी हुई लकड़ी का ही उपयोग होना चाहिए। पानी से चिपचिपी स्टिक को अगरबत्ती का कोटिंग लगे तो वह और गिली होकर अगरबत्ती को खराब कर देती है।
यह तरीका उपयोग में लाते समय मौसम को ध्यान में लेना उतना ही आवश्यक है।
बरसात के मौसम में हवा में ही गीलापन होता है। अगर बारिश का आलम है तो हवा में जो गीलापन होता है वह बांबू स्टिक अपने आप सोक लेती है। वह पहले से ही मोटी फूली हुई तैयार रहती है ।बारिश की हवा में बांबू स्टिक को पानी में गीला करने की इतनी जरूरत नहीं होती ।
जाड़े में बांबू स्टिक को पानी में भिगोना आवश्यक होता है ।लेकिन गीले बंडल को कपड़े से ढकने की जरूरत नहीं होती। बाहरी तापमान कम होने के कारण गीली हुई स्टिक जल्दी सूखती नहीं ।
गर्मी में हमें गीली स्टिक जल्दी ही सूख न जाए इसीलिए कपड़े में ढक कर रखना पड़ता है ।बाहरी गर्म हवा उसे जल्दी ही सुखाकर अगरबत्ती में क्रैक बना सकती है।